आज की ही है बस ये रात
कहनी थी उनसे कुछ ये बात
जब जब देखा था हमने तुझे
लम्हा वो हर पल का याद आएगा हमे
पहली नज़र में इश्क हुआ था आपसे
कह ना पाए दिल की बात कब से
और आये जब ये बेला आज आपसे
बिछड़ने की दिल आहे भरता है रो रो के
कभी न सोचा था ऐसा भी वक़्त आएगा
मिलने के बाद जुदा होने का भी समय आएगा
कभी ख़ुशी कभी गम के इस खेल में
क्या पता था ये दौर भी जुजार जायेगा
मिलने बिछड़ने के इस सफ़र में
कुछ साथी बने तो कुछ हमसफ़र
ऐतबार है मुझको ऐ दोस्तों
मिलेंगे हम ज़िन्दगी के और भी कई मोड़ पर
-- श्रीराम
3 comments:
poetry kab karni start kar di han....gud poem...kisne diwana bana diya?
kafi sahi keh jate ho kabhi tum...
@ANA Thanx dear! been quite some time... used to write in delhi too sometimes
@ Suruchi: :)
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