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Friday, March 4, 2011

आखरी सांस



ये काले बादल, ये घनघोर घटाएं

दिलाती है याद उस हसीन रात की

ये कड़कती बिजलियाँ, ये बहती हवाएं

भूलाये न भूल पाता, बातें उस आखरी मुलाकात की


हम तो समझ बैठे थे प्यार को भगवान्

दे दिया उनको, अपना दिल अपनी जान

मगर देखो उस खुदा की खुदाई

सज़ा में मिली तो सिर्फ दर्द-ऐ-जुदाई


नादान थे हम जो ये समझ बैठे, कि

हमसे जादा प्यार न कर सकेगा कोई

मगर क्या पता था इस नाचीज़ दिल को

ऊपर वाले की मर्ज़ी से, कभी जीत न सका है कोई


कहते है हर रात की सुबह होती है

हर दर्द की एक दवा होती है

मगर ऐ खुदा पे भरोसा रखने वाले बन्दों

एक सवाल था, क्या होगा जवाब आपका...


जब खुदा ही छीन लेता है ज़िन्दगी की वो हर रौशनी ?

जब अँधेरे और रौशनी के बीच का फर्क, फर्क नहीं रहता

और जब रौशनी की वो आखरी किरण,

अक्सर ज़िन्दगी की आखरी सांस होती है

---श्रीराम

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