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Sunday, October 23, 2011

ख़्वाबों के परिंदे


दिल में है एक अरमान
कुछ ख्वाब और कुछ सपने
कुछ कर दिखाने का एक जूनून
मगर दूर हूँ उनसे जो है अपने

दिन के उजाले में भी देखता हूँ एक सपना
रात की तन्हाई में भी करीब है वो अरमान
मगर इस ख़्वाबों की दौड़ में
छूट रहे है कुछ पल ज़िन्दगी के

डर लगता है उन गहरी रातों से
मगर हौसला ना हारूँगा कुछ ठोकरों से
उम्मीद कायम है एक नए दिन की
कभी तो छटेंगे ये काले बादल भी

सोचता हूँ कभी मैं भी उर पाउँगा
आसमान के पार चला जाऊँगा
देख सकूँगा परिंदों को अपने नीचे
सूरज से भी आँखे मिला पाउँगा

फिर भी एक सवाल उठता है जेहन में
क्या मंजिल तक पहुचना ही सब कुछ है
या फिर उन रास्तो में जिन पर हम चलते है
या उन छोटे छोटे पलों में
जो हमें ज़िन्दगी का एहसास दिलाते है
जो हमें जिंदा महसूस कराते है
--- श्रीराम

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