बैठे थे एक शाम हम यूँ ही
कि सोचा हमने उस डूबते हुए सूरज को देखकर
क्यूँ लोग उदास हो जाते है कुदरत की इस खूबसूरती पर
आज भी उठ जाते है कुछ लोग गिर के, बार बार ज़मीन पर
कि देखा हमने उस चाँद को
कितना ही रौशन कर दे वो उन गहरी रातों को
मगर नहीं भूल पाते लोग चरित्र पे लगे दाग को
बैठे थे एक सुबह हम यूँ ही
कि देखा उन पंछियो की उड़ान को
उड़ सकते है आप और हम भी, दूर गगन आसमान में
एक सच्चा मौका तो दो अपने आप को
बैठे थे एक रोज़ हम यूँ ही
कि, एक ख्याल आया हमारे दिल में
ना कोशिश की जिनके लिए, हमने कभी
आज करीब है दिल के सिर्फ वो कुछ लोग ही
अक्सर अपने खिड़कियो में , करते हुए इंतज़ार
कभी तो होगा सवेरा हमारी भी ज़िन्दगी में
कभी तो सच होंगे हमारे वो सपने भी
बैठते है हर रोज़ आज भी हम यूँ ही .
---श्रीराम
2 comments:
super like...:-))
Thanx Nidhi :)
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